क्या आर्य बाहर से आए थे ?

क्या आर्य बाहर से आए थे ?

हमे स्कूल में पढाया गया था कि हम आर्य बाहर से आए है? जाने अंजाने मै इस पर विश्वास भी करने लगा था, लेकिन जैसे जैसे मेरी खोजी प्रवृति विकसित हुई, पता चला की आर्य तो भारतीय उपमहाद्वीप के मुल निवासी है। ये अंग्रेजी, बामपंथी और कांग्रेसी इतिहासकार अब तक हमे बरगला रहे थे, बेवकूफ़ बना रहे थे? इनका इतिहास यह कहता है कि भारत मे रहने वाले लोग आर्य है, जो बाहर से आए थे और यहा आकर उन्होंने द्रविडो को जो यहा के मुल निवासी थे उनको मार भगाया और उनके इलाके पर काबिज हो गये।


मगर इन इतिहासकारों के पास ऐसा कोई ठोस सबूत नही है कि आर्यो और द्रविडो मे बडी या छोटी कभी कोई लडाई हुई थी? उनके बीच अपने अस्तित्व को लेकर कोई युद्ध हुआ था? बस उनके पास घी मे चुपड़ी हुई यह एक कहानी भर है। वैसे भी अंग्रेज और बामपंथी इतिहासकार, इतिहास के मामले मे कहानी गढ़ने मे माहिर माने जाते है। भारतीय शैली मे पला-पूसा हर भारतीय इतिहास को अपने दिल मे रखता है, उसके साथ जीता है, मरता है। पश्चिमी शैली के इतिहासकारों को पढने के लिए किताब खरीदनी पडती है, पुस्तकालय जाना पडता है।


हम कही बाहर से आए, यह इतिहास का वह जहर है जो हमे छल पूर्वक थाली मे परोसा गया है और हमारी पीढियाँ भूलवस इसे बडे चाव से चटखारे ले लेकर खा भी रही है। हम आर्यो की स्मृति में मनु है, जिन्होंने मानव जाति को मानव बनाया, हमारी स्मृति मे प्रलय भी है, जिससे मनु ने हमे उबारा, हमारी यादों मे पृथ भी है जिनके कारण इस धरती का नाम पृथ्वी पडा। हमारी यादो मे दुष्यंत और शंकुतला पूत्र भरत भी है जिनके कारण इस उपमहाद्वीप का नाम भारतवर्ष पडा। हमारे जेहन मे इतनी सारी प्राचीनतम स्मृतियाँ है लेकिन हम किसी और देश से भारत मे आए, यह हमारी यादों में कही नही है।

कुछ इतिहासकार और भाषा विज्ञानी कहते है कि आर्यो के साहित्य मे हाथी का कही जिक्र भी नही है क्यो कि वे पृथ्वी के जिस भू-भाग से आए थे वहा हाथी नही पाए जाते थे। मैने उनको बस इतना कहूँगा कि अगर आर्यो ने हाथी का जिक्र कभी किया नही था तो वेदों में भगवान इंद्र के ऐरावय का जिक्र क्यो और कैसे है ? भगवान गणेश की पूजा से संबंधित कहानी क्या कहती है ? आर्य तो भगवान गणेश की पूजा करते थे, इसका ठोस सबूत शीला लेखो और आकृतियों के रूप मे भी दर्ज है। वेद आज से हजारों साल पहले लिखे गये थे, जो हजारों साल तक लोगो को कठंस्थ थे, जिनको बाद मे लिपिबद्ध किया गया ।


वेद, पुराण, रामायण और महाभारत तो अपने आप मे इतिहास ही है। हमारी यादों मे असुर है, देव है, देवा-सुर संग्राम है, हमारी संस्कृति मे यक्ष भी है, किन्नर भी है, गंधर्व भी है पर हमारी स्मृति में वे आर्य नही है जो कही बाहर से आक्रमणकारी के रूप मे यहा आए थे। चाहे वेद हो, ब्राहमण ग्रंथ हो, आरण्य ग्रंथ हो, उपनिषद हो, रामायण और महाभारत हो या अठारह पुराण या अठारह उपपुराण, तमाम वैज्ञानिक दृष्टिकोण साहित्य हो, समाज शास्त्री ग्रथ हो या ललित साहित्य या संस्कृत के किसी भी ग्रंथ मे परोक्ष, अपरोक्ष, प्रत्यक्ष कही कोई संदर्भ नही मिलता की हम आर्य कही बाहर से आए है।


दुनिया मे सभी सभ्यताओं ने अपनी संस्कृति, परंपरा, बात-व्यवहार, कर्म फल, लिखित- अलिखित साहित्य, भाषा-बोली वही विकसित किये है, जहा पर उन्होंने अपना वास किया। भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर आर्यो की संस्कृति, भाषा-बोलीं, साहित्य का कोई ठोस सबूत कही नही मिलता है। पश्चिमी इतिहासकार पुरातात्विक प्रमाणों पर ज्यादा भरोसा करते है पर पुरातत्व का ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि हम आर्य बाहर से आए है। जिन खुदाइयों पर पश्चिमी इतिहासकारों को बडी श्रद्धा है, विश्वास है उन हडप्पा, मोहनजोदड़ो और वैसी ही दुसरी खुदाइयों से भी अब तक यह साबित नही हो पाया है कि हम कही बाहर से आए थे।

अलबेरूनी, ह्वानसांग, फार्हान सरीखे खोजी यात्रियों के यात्रा वृतांतो और जिन मध्यकालीन मुस्लिम इतिहासकारों पर वे फिदा है, उनकी किताबों में भी कही कोई संकेत नही है कि इस मुल्क के वासिदें कही बाहर से आए है। जिन तामपत्रो, सिक्को, शीला लेखो को देवता की तरह पूजते है, उनमे भी कही उल्लेख नही है कि हम कही बाहर से आए है।


जब ऐसी कोई घटना कही घटी ही नही, कोई उल्लेख ही नही है, ऐसी कोई हलचल हुई नही, कोई वाक़या कही कोई जिक्र ही नही फिर एक अघटित को हमारे इतिहास मे जबर्दस्ती ठुसने की कोशिश क्यो कि गई ? क्यो इस देश की आत्मा की जड को काटने का प्रयास किया जा रहा है। हमसे क्यो किया जा रहा है ऐसा छल? ताकि यह सिद्ध किया जा सके कि भारत हमारा घर नही, एक धर्मशाला है। यहा अंग्रेज आए, फ्रांसीसी आए, तुर्क और अफ़गान आए, मुगल आए, कुषाण और हुण आए वैसे ही यहा आर्य आए? यह देश किसी का नही है, जो आया गया, बसता गया। ताकि यह सिद्ध किया जा सके कि इस देश की अपनी कोई संस्कृति नही, कोई इतिहास नहीं, कोई सभ्यता नही, सब बस यू ही चलता रहा। आर्यो और द्रविडो के बहाने यह हिंदुत्व पर हमला है, हिंदुत्व को तोडने और उसे मिटाने की चाल है। यह छल है।


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