1962 and 1971 का युद्ध

1962 and 1971 का युद्ध   



1962 के भारत चीन ऑथोराइज़्ड वॉर में 3300 से ज्यादा भारतीय सैनिक शहीद हुए थे वहीं मोटा-मोटी एक अनुमान के मुताबिक भारत के चीन द्वारा 1500 से ज्यादा शायद 2000 तक भारतीय सैनिक युद्धबन्दी भी हुए थे, ये आंकड़ा 2500 तक का भी हो सकता है। लेकिन नेहरू सरकार द्वारा ऐसा कोई आधिकारिक दस्तावेज पेश नहीं किया जिनमें वो चीन द्वारा बनाये गए भारतीय युद्धबन्दी सैनिकों की संख्या सटीक या एक्ज़ेक्ट बता सके। क्यों? क्या वो भारत के सैनिक और नागरिक नहीं थे?


नेहरू सरकार ने उनको छुड़ाने के लिए क्या प्रयास किये अब वक्त आ गया है देश जाने इस बारे में। नेहरू जी ने हिंदी चीनी भाई भाई का नारा दे कर बिना तैयारी के भारत को युद्ध में झोंक दिया था। बिना आर्म्स एनिमेशन जैकेट टोपी शूज के अनेकों भारतीय सैनिकों ने नदी में कूद के जान बचाते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।



1971 भारत पाकिस्तान युद्ध में भारत द्वारा बनाये गए पाकिस्तानी युद्धबन्दियों का एक्यूरेट आंकड़ा कहीं उपलब्ध नहीं है। परन्तु उस वक़्त के सैन्य दस्तावेजों से प्राप्त जानकारी के अनुसार ये संख्या लगभग 90 से 92 या 93 हज़ार थी। इसमें 80 से 82 हज़ार पाकिस्तानी आर्मी के सोल्जर्स और अफ़सरान थे और करीब 10 से 12 या 13 हज़ार सिविलियन्स थे। अब तक के विश्व इतिहास की ये सबसे बड़ी सैन्य विजय है और सबसे बड़ा सरेंडर यानी दुश्मन का आत्मसमर्पण भी।

भारतीय फौजों ने इस युद्ध मे अदम्य साहस शौर्य महा-पराक्रम और शानदार रणनीति और उच्च मनोबल का प्रदर्शन किया था। किन्तु .... भारत ये जीता हुआ युद्ध वार्ता की मेज पर हार गया। दूसरे शब्दों में आप इसे यूँ समझिये कि भारतीय सेना द्वारा जीता गया वैश्विक इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध तत्कालीन सत्ताधारी दल कांग्रेस की पीएम श्रीमती इंदिरा गांधी वार्ता की टेबल पर हार गई। आम जनमानस से ले के विशेषज्ञों तक और सम्पूर्ण विश्व के जानकारों के मुताबिक इंदिरा गांधी यदि चाहती तो उस वक़्त इन पाकिस्तानी युद्धबन्दियों के बदले पाकिस्तान से पीओके की सौदेबाज़ी कर सकती थी, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया....


 



 चलिए अब एक और रोचक बात सुनिये:- इस युद्ध में पाकिस्तान द्वारा भारत के 54 युद्धबन्दी बनाये गए थे, जी हां फिफ्टी फोर इंडियन सोल्जर्स। 54 भारतीय युद्धबन्दी पाकिस्तान द्वारा बनाये गए। इसमें जल थल नभ तीनों सेनाओं के भारतीय युद्धबन्दी सम्मिलित है। इंदिरा जी ने पीओके को ले के सौदेबाज़ी नहीं की ये उनकी नाकामी थी ही फिर भी देश सहन कर गया , लेकिन .... इंदिरा जी ने 93 हज़ार पाकिस्तानी युद्धबन्दी छोड़ने के बदले 54 भारतीय सैनिकों को वापस पाक की कैद से रिहा करवा के भारत लाने की सौदेबाज़ी क्यों नहीं की ?


क्या 54 भारतीय सैनिकों की जान की कोई कीमत नहीं थी ? ये 54 कैदी आज ज़िन्दा है या मर गए या पाकिस्तान की किन किन जेलों में यातनाएं झेल रहे हैं ये बात ना उनके घरवालों को मालूम है ना भारत सरकार को मालूम है 48 वर्ष गुजर चुके हैं इस युद्ध को। इन भारतीय युद्धबन्दी सैनिकों के परिवार राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से ले के यूएन तक आजतक इस बाबत गुहार लगा रहे हैं कि हमारे पुत्र भाई पति को पाकिस्तान की कैद से रिहा करवाइये। सबसे रोमांचक बात एक और बताऊ। तत्कालीन सत्ताशीन कांग्रेस सरकार की पीएम श्रीमती गांधी ने पाकिस्तान को इन 54 भारतीय युद्धबन्दी सैनिकों के नाम पहचान का डॉजियर सौंपने में 7 वर्ष का समय लगाया था। जी हां 7 वर्ष का समय और ये मैं नहीं कहता बल्कि ये सब आधिकारिक आंकड़े है और इन साक्ष्यों के दस्तावेज मौजूद है।

अब एक और रोमांचक बात बताऊं? भारत सरकार (कांग्रेस) ने पहले अपने दस्तावेजों में इन 54 भारतीय युद्धबन्दियों को मिस्ड इन वॉर की श्रेणी में रखा यानी युद्ध मे लापता और कुछ समय बाद बिना पाकिस्तान से इन 54 इंडियन सोल्जर्स की रिहाई की कोशिशों के सरकार ने दस्तावेजों में इन 54 भारतीय युद्धबन्दियों को किल्ड इन वॉर यानी युद्ध में मृत की श्रेणी में रखा है। 1948 के भारत पाक के अन-ऑथोराइज़्ड वॉर में भारत का एक भी सैनिक युद्धबन्दी नहीं बना था। भारतीय सेना और सरकार पे इस बाबत कोई दस्तावेज भी नहीं है।


लेकिन विंग कमांडर अभिनंदन की 60 घण्टों में हुई रिहाई पे दुश्मन देश के पीएम इमरान खान को शुभकामनाएं देने वाले और एयर-स्ट्राइक के सबूत मांगने वाले मेरे इन प्रश्नों का जवाब दे पायेंगे? वैसे ये प्रश्न भाजपा प्रवक्ताओं द्वारा अग्रेसिव हो के पूछे जाने चाहिए विपक्ष को। लेकिन मैं ही पूछ लेता हूँ क्योंकि ये नए युग का हिंदुस्तान है। ये सवाल भी पूछेगा ये 70 वर्षों का हिसाब भी लेगा।



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