Ahimsa paramo dharma dharma hinsha tathaiv cha | अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव चः

अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव चः 
Ahimsa paramo dharma dharma hinsha tathaiv


कभी कभी मै सोचता था कि हिन्दु सनातन धर्म इतना महान और शक्तीशाली था कि पूरे विश्व में उसका डंका बजता था फिर क्या हुआ कि सनातन हिन्दुधर्म का इतना पतन (नुकसान या हानि) हो गया क्या कारण था? जब सोचा और पढा तो समझ में आया कि सम्राट अशोक ने अपने शासन काल में अपनी वीरता से सम्पूर्ण भारत पर अपना एक छत्र राज किया परन्तु जब बौद्ध धर्म अपनाया तो अंहिसा परमो धर्मः श्लोक का प्रचार किया और इस अधूरे श्लोक ने सनातन धर्म हिन्दु का सत्यानाश कर डाला जबकि महाभारत का पूरा श्लोक है अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव चः। अर्थात:- यदि मनुष्य के लिऐ अहिंसा परम धर्म है तो धर्म मतलब (सत्य) की रक्षा के लिए हिंसा उससे भी श्रेष्ठ है जब धर्म (सत्य) पर संकट आए तो मनुष्य को शस्त्र उठाना चाहिए और धर्म (सत्य) की रक्षा करनी चाहिए।

अधूरे श्लोक का परिणाम ये निकला कि हिन्दुओं ने अपने शस्त्र छोड दिए शस्त्र विद्या का अभ्यास छोड दिया। ऋषि मुनियों ने शस्त्रों पर अनुसंधान करने छोड दिए और ये मान बैठे कि सनातन धर्म (हिन्दु) धर्म तो विश्व में सबसे महान और शक्तीशाली है इस को कोई नहीं हरा सकता और चल पडे शांती के मार्ग पर सैकडों वर्ष बीत गए, जो शस्त्र विद्या एक पीढी से दुसरी पीढी को प्राप्त होती थी वो प्राप्त नहीं हुई। आने वाली पीढीयों को आणविक और दिव्य अस्त्रों का ज्ञान नहीं मिला। परिणाम ये हुआ कि जो हिन्दु योद्धा थे वो सिर्फ तीर, तलवार और भालों से लडने वाले योद्धा बनकर रह गए दिव्य अस्त्रों का ज्ञान उन्हें नहीं मिल पाया और अंहिसा परमो धर्मः के कारण बहुत कम ही योद्धा रह गए और अधिकतर हिन्दु शांती और अहिंसा के मार्ग पर चलते थे।
क्योंकि भारत वर्ष की संस्कृति में विज्ञान उन्नत किस्म का था तो हिन्दु ऐसी वस्तुओं का निर्माण करते थे जो पूरे विश्व में कहीं नहीं होती थी। तो उनसे हिन्दु विदेशियों से व्यापार करता था और विदेशी उन्नत किस्म की वस्तुऐं खरीदने भारत आते थे और भारतीय व्यापारी व्यापार से बहुत धन अर्जित करते थे जिसके कारण भारत सोने की चिडिया कहलाता था यही कारण था कि मुगल लुटेरों की नजर भारत पर जम गई और वो भारत को लूटने के लिऐ भारत पर हमले करने लगे। क्योंकि भारत अहिंसा के मार्ग पर चलता था और योद्धा कम बचे थे इसकी तुलना में मुगल लुटेरे क्रूर और हिंसक पृवर्ती के थे।

उन्होंने हिन्दुओं की नृशंस हत्या करनी शूरू कर दी और भारत के हिस्सों पर कब्जा करना शुरू कर दिया भारत में योद्धा कम थे और मुगल दुर्दांत और हत्यारे थे। उन्होंने भारत पर कब्जा कर लिया उसके बाद अंग्रेजों ने भी यही काम किया और भारत को लूट कर ले गऐ और इसी अधूरे श्लोक अंहिसा परमों धर्मः का उपयोग गाॅधी ने किया और भारत के क्रांतीकारी वीरों को दोषी बताया फिर 1947 की आजादी के बाद भारत के प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भी इसी अधुरे श्लोक की गलतफहमी में हथियारों के कारखाने में हथियारों का उत्पादन बंद करवा दिया।

जिसका परिणाम ये हुआ चीन ने पीठ में छुरा घोंप दिया और 1962 में भारत पर हमला कर दिया और हिमालय पर्वत के बहुत सारे हिस्से पर अपना कब्जा कर लिया और कैलाश पर्वत जो कि हिन्दुओं का पवित्र तीर्थ स्थल भी चीन के कब्जे में चला गया और हमारे जवानों के पास इतना हथियार और गोला बारूद भी नहीं था की चीन से लड सके और तो मित्रों कहने का तात्पर्य इतना ही है कि इस अधुरे श्लोक अंहिसा परमो धर्मः का उपयोग छोडो और जागो और धर्मकी रक्षा के लिऐ शस्त्र उठाओ।
ध्यान रहे ये श्लोक तब लिखे गए थे जब अब्रहमिक धर्म (ईसाई और इस्लाम) इस विश्व में आये ही नहीं थे, लेकिन सनातन धर्म इस जगत में कब से किसी को अंदाज़ा नहीं है और धर्म के लिए हिंसा का अभिप्राय सनातन धर्म के रक्षार्थ लिखा गया जिसमे एक तुलसी की भी पूजा की जाती है और दुष्कर्मो के लिए अनिवार्य मृत्यु का विधान है जिससे की समाज की भयमुक्त किया जा सके।

भारत में हमारी हिंदू विरोधी सरकारे भी हिन्दुओ को आधा ही श्लोक बताने की शौकीन हैं। कारण हिन्दुओ का शोषण जरी रखा जा सके। इसीलिये इस श्लोक को नयी पीढ़ी के पास अंधाधुंध अग्रेषित करे। अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च। आपने स्वयं और अपने परिवार के लिए सब कुछ किया, देश के लिए भी कुछ करिये, क्या यह देश सिर्फ उन्ही लोगो का है जो सीमाओं पर मर जाते हैं? सोचिये “अहिंसा परमो धर्मः” (यह गलत है, पूर्ण नहीं है)

जबकि पूर्ण श्लोक इस तरह से है। “अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च: l” (अर्थात् यदि अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है और धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उस से भी श्रेष्ठ है) क्या हमारे कोइ भी भगवान् बिना शस्त्र के हैं? नहीं ना…
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