क्या मंदिरो का खजाना खूला है?

 क्या मंदिरो का खजाना खूला है?



क्या मंदिरो का खजाना खूला है? एक झूठ फैलाया जा रहा है कि महामारी में मंदिर वाले क्या कर रहे हैं? भक्त उनको करोड़ों का चढ़ावा चढ़ाते हैं लेकिन अब वो अपना खजाना क्यों नहीं खोल रहे हैं? जबकि सच यह है कि सबके खजाने पहले से खुले हुए हैं। भारत के सभी बड़े मंदिरों के ट्रस्ट सरकार के कंट्रोल में हैं, उनमें जो भी चढ़ावा चढ़ता है वो सरकारी खजाने में जमा होता है। ये ट्रस्ट कई बड़े अस्पताल और स्कूल चलाते हैं। मुंबई का सिद्धिविनायक मंदिर हर साल अपने चढ़ावे का बड़ा हिस्सा सरकारी अस्पतालों में मशीनों की खरीद और गरीबों का बिल भरने पर खर्च करता है। मंदिर दादर में एक बड़ा मल्टीस्पेशिलिटी अस्पताल बनवा रहा है। काशी विश्वनाथ मंदिर मोबाइल हॉस्पिटल चलाता है, जिसमें आसपास के गाँवों में गरीबों का मुफ़्त इलाज होता है। बनारस के किसी भी सरकारी अस्पताल में चले जाएं, काशी विश्वनाथ मंदिर की दान की हुई एक्स-रे और दूसरी मशीनें दिख जाएगी।


ये दोनों औसत कमाई वाले मंदिर हैं, तिरुपति और जगन्नाथ मंदिर का हिसाब देने लगे तो जगह कम पड़ जाएगी। यही हालत गुरुद्वारों की है जो रोज लाखों-करोड़ों भूखों का पेट भर रहे हैं। हर आपदा में वो सेवा करने वालों में सबसे आगे होते हैं बौद्ध, जैन और पारसी भी अपने-अपने तरीके से चैरिटी करते हैं। चर्च वाले भी अस्पताल चलाते हैं लेकिन उनका फोकस इलाज से ज़्यादा धर्मांतरण पर होता है। कुल मिलाकर एक ही मजहब का नाम बच जाता है।

लेकिन उनसे सवाल पूछने की किसी में हिम्मत नहीं है क्योंकि गंगा जमुनी तहजीब खतरे में पड़ जाती है। उनसे सवाल पूछिए चाहे मत पूछिए, लेकिन कृपा करके सनातन परम्परा के धर्मों और उनके धर्मस्थलों पर कीचड़ उछालना बंद कीजिए।


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