क्या आपने कभी इतिहास में यह पढा है कि कांग्रेस की स्थापना क्यों की गई? और क्यों एक निर्दई अंग्रेज कलेक्टर ए ओ ह्यूम ने कांग्रेस की स्थापना किया? आखिर एक अंग्रेज कलेक्टर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना क्यों करेगा जो भारत की आजादी के लिए लड़ेगी जबकि वह अंग्रेज कलेक्टर खुद एक बेहद जुल्मी अधिकारी था।
बात 1857 की क्रांति के समय की है। उस समय इटावा का कलेक्टर ए ओ ह्यूम था। इटावा के क्रांतिकारी इटावा के पास जसवंतनगर में मोर्चा ले रहे थे। चारों ओर क्रांतिकारियों की प्रबलता थी। हर हर महादेव ' की गूंज और ' भारत माता की जय के नारे जब अंग्रेजों के कान में पड़ते थे तो उनके पैरों तले की धरती खिसक जाती थी।
जब इन क्रांतिकारियों ने इटावा में अपनी मोर्चाबंदी की तो ह्यूम अपने कुछ अंग्रेज सिपाहियों को साथ लेकर इन क्रांतिकारियों का दमन करने के लिए वहां पहुंचा। कांग्रेस के संस्थापक के रूप में पूजा जाने वाला यह अंग्रेज कलेक्टर जब वहां पहुंचा तो उसने स्वयं भी हमारे कई क्रांतिकारियों की हत्या कर दी थी। हमारे सैनिक क्रांतिकारी एक मंदिर में अपना मोर्चा लगाए हुए थे। ह्यूम अपने लोगों के साथ वही पहुंच गया। उसने मंदिर का घेराव करने का आदेश अपने सिपाहियों को दिया।
ह्यूम के सिपाहियों में अनेक राजभक्त हिंदुस्तानी सिपाही भी थे। पर जब वह मंदिर के पास पहुंचे तो उनका हृदय परिवर्तन हो गया। अंग्रेज सेना अधिकारी कर्नल डेनियल ने उन हिंदुस्तानी सिपाहियों को अंग्रेजों की ओर से मंदिर के भीतर बैठे क्रांतिकारियों पर गोली चलाने का आदेश दिया, परंतु प्रत्येक हिंदुस्तानी सिपाही ने अपने क्रांतिकारी देशभक्तों पर गोली चलाने से इंकार कर दिया।
एक प्रकार से वह स्वयं अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोही हो उठे। अब वह स्वयं भी क्रांति का एक अंग बन चुके थे। कलेक्टर ह्यूम को अब अपने प्राणों का संकट अपने सामने ही खड़ा दिखाई दे रहा था। उधर मंदिर के भीतर बैठे क्रांतिकारियों को वस्तुस्थिति को समझने में देर नहीं लगी। उन्होंने अवसर का लाभ उठाया और डायनियल सहित कई अंग्रेजों को अपनी गोलियों से छलनी कर वहीं ढेर कर दिया।
अब कलेक्टर ह्यूम के सामने अपने प्राण बचाकर भागना ही एकमात्र विकल्प था। हिंदुस्तानी सिपाहियों की उदारता देखिए कि उन्होंने अपने देशभक्त क्रांतिकारियों पर तो गोली चलाई ही नहीं, साथ ही उस अंग्रेज कलेक्टर पर भी गोली नहीं चलाई जो उनके बीच ही खड़ा था।
यहां से ह्यूम को एक मुस्लिम महिला के वेश में अपने प्राण बचाकर भागना पड़ा था। उसने अपने गोरे शरीर को काले रंग से पुतवाया। पतलून उतारकर साड़ी पहनी और बुर्का ओढ़कर अपना भेष परिवर्तित कर लिया। रात के अंधकार में वह गोरे सिपाहियों के साथ वहां से बच कर भागा। उसे हिंदुस्तानी सिपाहियों से भी प्राण संकट था। जैसे तैसे वह अंग्रेज आगरा पहुंचा।
अंग्रेज लेखक केये ने लिखा है कि 5 जुलाई को आगरा में 2000 भारतीय सैनिकों पर ह्यूम ने तोपों से गोले बरसाए। उसने अनेकों हिंदुस्तानी सिपाहियों की हत्या की। इटावा के पास अनंतराम में राष्ट्रभक्त विद्रोहियों और सेना के बीच हुए युद्ध में ह्यूम ने 131 हिंदुस्तानी क्रांतिकारियों की हत्या करा कर घोर नृशंसता व क्रूरता का परिचय दिया था।
इसी क्रूर हत्यारे को लोकतंत्र के प्रति अनास्था रखने वाले तानाशाह निर्दयी अधिकारी को और भारतीयों के प्रति घृणा से आकंठ डूबे आततायी को भारत में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का संस्थापक दिखाकर आज तक एक महापुरुष के रूप में इतिहास में सम्मान पूर्ण स्थान प्राप्त है। अंग्रेज चले गए पर अंग्रेजीयत हमें अभी भी पराधीन किए हुए हैं। अब यह निश्चित होना चाहिए कि ए ओ ह्यूम बड़ा था या हमारे 131 क्रांतिकारियों का बलिदान बड़ा था? हम कब तक भूले रहेंगे अपने क्रांतिकारियों के बलिदानों को ?
यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य और सत्य है कि गांधी जी ने सरदार भगतसिंह और उनके अन्य क्रांतिकारी साथियों के द्वारा यदि किसी एक व्यक्ति की भी हत्या की गई या कोई क्रांतिकारी गतिविधि की गई तो उनकी न केवल आलोचना की बल्कि उन क्रांतिकारियों से घृणा का प्रदर्शन सार्वजनिक रूप से भी किया। जबकि अपनी कांग्रेस के संस्थापक ए ओ ह्यूम के माथे पर लगे 131 क्रांतिकारियों की नृशंसता पूर्ण हत्या पर वह कभी नहीं बोले।
बाद में ओ ह्यूम ने लंदन में वायसराय के सामने एक प्रस्ताव रखा। अब हमें भारत पर राज करने के लिए अपने तौर-तरीकों में बदलाव करना पड़ेगा। अंग्रेज भी अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति से बहुत डरे हुए थे, उसके बाद अंग्रेजों ने भारत में कुछ सुधारवादी कार्यक्रम किए। भारतीयों को कुछ अधिकार दिए और ए ओ ह्यूम ने वायसराय को यह बताया अब हमें एक ऐसे संगठन का निर्माण करना चाहिए जो एक सेफ्टी वाल्व की तरह काम करें। जहां से हम भारतीयों के गुस्से को बहुत आसानी से रिलीज कर सकें और भारतीय भी यह सोच कर खुश रहे कि वह देश की आजादी के लिए आंदोलन कर रहे हैं और वह आंदोलन हमारे लिए कोई नुकसानदायक भी ना हो।
उसके बाद ए ओ ह्यूम ने कुछ और दलालों के साथ मिलकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना किया जिसका यह उद्देश्य था कि वह एकदम शांतिपूर्ण तरीके से अहिंसक तरीके से आजादी का आंदोलन करेगी वह धरना प्रदर्शन आयोजित करेगी वह कभी कोई हिंसा नहीं करेगी। और इस तरह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना करके अंग्रेजों ने 1857 से लेकर 1947 तक यानी लगभग 1 सदी तक और भारत पर राज किया।
यदि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना नहीं हुई होती तब जिस तरह से अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति भड़की और अंग्रेजों से आधा हिंदुस्तान आजाद करवा लिया गया था उस तरह से बहुत पहले ही भारत आजाद हो गया होता और भारत के दो टुकड़े भी नहीं हुए होते।
कांग्रेस भी अहिंसा की पुजारी बनी रही है परंतु अपने मूल में उस हत्यारे को आज तक पूजती आ रही है। जिसने हमारे 131 क्रांतिकारियों की हत्या की थी। सावरकर जैसे हमारे क्रांतिकारी तो गांधी और उनकी कांग्रेस के लिए घृणा के पात्र हैं, परंतु अपना हत्यारा संस्थापक उन्हें पूजा के योग्य दिखाई देता है। यह दोगला चरित्र है। इसी दोगले चरित्र के कारण कांग्रेस ने इस सनातन राष्ट्र के चरित्र को भी दोगला करने का हर संभव प्रयास किया है। जिसका परिणाम हमें भुगतना पड़ रहा है।
कांग्रेस को यह समझना चाहिए था कि हत्यारों के हत्यारे को हत्यारा नहीं कहा जा सकता, जबकि निरपराध लोगों की हत्या करने वाले हर स्थिति में और हर काल में हत्यारे ही होते हैं। भारत का यही सनातन राष्ट्रीय मूल्य है। इसी दृष्टिकोण से हमें इतिहास का गंभीर चिंतन करते हुए उसका फिर से तथ्यात्मक लेखन करना ही होगा।
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