एलोपेथी के मुकाबले आयुर्वेद श्रेष्ठ क्यों है?
एलोपेथी के मुकाबले आयुर्वेद श्रेष्ठ क्यों है
आज भारत में जारी एक बहुत बड़े षड़यंत्र के ऊपर आप लोगों का ध्यान आकृष्ट करना चाहूँगा। भारत सरकार ने 1974 में श्री जयसुखलाल हाथी की अध्यक्षता में एक कमिटी बनाई थी, जिससे हम हाथी कमिटी या हाथी कमीशन के रिपोर्ट के रूप में जानते हैं और जिससे कहा गया था कि बाज़ार में कौन- कौन से दवाएं हैं जो हमारे लिए सबसे जरूरी हैं और जिनके बिना हमारा काम नहीं चल सकता।
हाथी कमिटी ने अपनी रिपोर्ट 1975 में तैयार कर सरकार को बताया कि भारत के मौसम, वातावरण और जरूरत के हिसाब से 117 दवाएं काफी जरूरी हैं। इन 117 दवाओं में छोटी बीमारी (खांसी, बुखार, आदि) से लेकर बड़ी बिमारियों (कैंसर) तक की दवा थी। कमिटी ने कहा कि ये वो दवाएं हैं जिनके बिना हमारा काम नहीं चल सकता।
कुछ सालों बाद विश्व स्वस्थ्य संगठन (WHO) ने कहा कि ये लिस्ट कुछ पुरानी हो गयी हैं और उसने हाथी कमिटी की लिस्ट को बरक़रार रखते हुए कुछ और दवाएं इसमें जोड़ी और ये लिस्ट हो गई 350 दवाओं की। मतलब हमारे देश के लोगों को केवल 350 दवाओं की जरुरत है किसी भी प्रकार की बीमारी से लड़ने के लिए, चाहे वो बुखार हो या कैंसर लेकिन हमारे देश में बिक रही है 84000 दवाएं यानी जिन दवाओं कि जरूरत ही नहीं है वो डॉक्टर हमे खिलते है क्योंकि जितनी ज्यादा दवाए बिकेगी डॉक्टर का कमिसन उतना ही बढेगा।
एक बात साफ़ तौर पर साबित होती है कि भारत में एलोपेथी का इलाज सफल नहीं हो पाया है। इतना पैसा खर्च करने के बाद भी बीमारियाँ कम नहीं हुई बल्कि और बढ़ गई है। यानी हम बीमारी को ठीक करने के लिए जो एलोपेथी दवा खाते है उससे और नई तरह की बीमारियाँ सामने आने लगी है। इन दवाओं के साइड इफेक्ट बहुत ज्यादा है यानी एक बीमारी को ठीक करने के लिए दवा खाओ तो एक दूसरी बीमारी पैदा हो जाती है। आपको कुछ उदहारण दे कर समझाता हूँ:-
Antipyretic
बुखार को ठीक करने के लिए हम एंटीपायिरेटिक दवाएं खाते है जैसे पैरासिटामोल, आदि। बुखार की ऐसी सैकड़ों दवाएं बाजार में बिकती है ये एंटीपायिरेटिक दवाएं हमारे गुर्दे ख़राब करती है। गुर्दा ख़राब होने का सीधा मतलब है कि पेशाब से सम्बंधित कई बिमारियों का पैदा होना, जैसे पथरी, मधुमेह, और न जाने क्या क्या। एक गुर्दा खराब होता है, उसके बदले में नया गुर्दा लगाया जाता है तो ऑपरेशन का खर्चा करीब 3.50 लाख रुपये का होता है।
Antidiarrheal
इसी तरह से हम लोग दस्त की बीमारी में antidiarrheal दवाए खाते है। ये antidiarrheal दवाएं हमारी आँतों में घाव करती है जिससे कैंसर, अल्सर आदि भयंकर बीमारियाँ पैदा होती है।
Analgesic (commonly known as a Painkiller)
इसी तरह हमें सरदर्द होता है तो हम एनाल्जेसिक दवाए खाते है जैसे एस्प्रिन, डिस्प्रिन, कोल्डरिन ऐसी और भी सैकड़ो दवाए है ये एनाल्जेसिक दवाए हमारे खून को पतला करती है। आप जानते है कि खून पतला हो जाये तो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और कोई भी बीमारी आसानी से हमारे ऊपर हमला बोल सकती है।
आपने अखबारों में या टी वी पर सुना होगा कि किसी का एक्सिडेंट हो जाता है तो उसे अस्पताल ले जाते, ले जाते रास्ते में ही उसकी मौत हो जाती है। समझ में नहीं आता कि अस्पताल ले जाते ले जाते मौत कैसे हो जाती है? होता क्या है कि जब एक्सिडेंट होता है तो जरा सी चोट से ही खून शरीर से बाहर आने लगता है और क्योंकि खून पतला होता है तो खून का थक्का नहीं बनता जिससे खून का बहाव रुकता नहीं है और खून की कमी लगातार होती जाती है और कुछ ही देर में उसकी मौत हो जाती है।
ये दवा कंपनिया बहुत बड़ा कमिसन देती है डॉक्टर को यानी डॉक्टर कमिशनखोर हो गए है या यूँ कहे कि डॉक्टर दवा कम्पनियों के एजेंट हो गए है. सारांस के रूप में हम कहे कि मौत का खुला व्यापार धड़ल्ले से पूरे भारत में चल रहा है तो कोई गलत नहीं होगा। फिर सवाल आता है कि अगर इन एलोपेथी दवाओं का सहारा न लिया जाये तो क्या करे ? इन बामारियों से कैसे निपटा जाये? तो इसका एक ही जवाब है आयुर्वेद।
एलोपेथी के मुकाबले आयुर्वेद श्रेष्ठ क्यों है
- आयुर्वेद की दवाएं किसी भी बीमारी को जड़ से समाप्त करती है, जबकि एलोपेथी की दवाएं किसी भी बीमारी को केवल कंट्रोल में रखती है।
- आयुर्वेद का इलाज लाखों वर्षो पुराना है, जबकि एलोपेथी दवाओं की खोज कुछ शताब्दियों पहले हुई।
- आयुर्वेद की दवाएं घर में, पड़ोस में या नजदीकी जंगल में आसानी से उपलब्ध हो जाती है, जबकि एलोपेथी दवाएं ऐसी है कि आप गाँव में रहते हो तो आपको कई किलोमीटर चलकर शहर जाना पड़ेगा और डॉक्टर से लिखवाना पड़ेगा।
- आयुर्वेदिक दवाएं बहुत ही सस्ती है या कहे कि मुफ्त की है, जबकि एलोपेथी दवाओं कि कीमत बहुत ज्यादा है। एक अनुमान के मुताबिक एक आदमी की जिंदगी की कमाई का लगभग 40% हिस्सा बीमारी और इलाज में ही खर्च होता है।
- आयुर्वेदिक दवाओं का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है, जबकि एलोपेथी दवा को एक बीमारी में इस्तेमाल करो तो उसके साथ दूसरी बीमारी अपनी जड़े मजबूत करने लगती है।
- आयुर्वेद में सिद्धांत है कि इंसान कभी बीमार ही न हो और इसके छोटे छोटे उपाय है जो बहुत ही आसान है। जिनका उपयोग करके स्वस्थ रहा जा सकता है। जबकि एलोपेथी के पास इसका कोई सिद्दांत नहीं है।
- आयुर्वेद का 85% हिस्सा स्वस्थ रहने के लिए है और केवल 15% हिस्सा में आयुर्वेदिक दवाइयां आती है, जबकि एलोपेथी का 15% हिस्सा स्वस्थ रहने के लिए है और 85% हिस्सा इलाज के लिए है।
वास्तविकता यही है कि आधुनिक जीवनशैली पर चलने वाला हर एक व्यक्ति आज किसी न किसी शारीरिक या मानसिक बीमारी से ग्रस्त है। इन सामान्य दिखने वाली बेहद घातक बीमारियों से बचने के लिए आप के सामने प्रस्तुत हैं दादी माँ के कुछ नुस्खे जो कि 100 फीसदी कारगर तो हैं ही साथ ही इनका कोई भी साइड इफेक्ट भी नहीं होता है। आज हम देखेंगे कि पेट संबंधी प्रमुख समस्या गैस से निजात पाने के लिये हमारी अनुभवी दादी या नानी अपने किचन से क्या अचूक उपाय बताती है।
कमर दर्द:-
आज कम उम्र से ही व्यक्ति कई बीमारियों से घिर जाता है। जैसे कब्ज़, गैस, कमर दर्द, त्वचा के रोग, रक्त चाप, दांत संबंधी रोग। ये कुछ एसी बीमारियां हैं जिनसे दुनिया का लगभग हर दूसरा व्यक्ति हैरान-परेशान है। जिसे पेट की कोई भी समस्या न हो ऐसा व्यक्ति तो दिन के उजाले में भी ढंढना मुश्किल जान पड़ता है। वास्तविकता यही है कि आधुनिक जीवनशैली पर चलने वाला हर एक व्यक्ति आज किसी न किसी शारीरिक या मानसिक बीमारी से ग्रस्त है। इन सामान्य दिखने वाली बेहद घातक बीमारियों से बचने के लिए आप के सामने प्रस्तुत हैं कुछ नुस्खे जो कि 100 फीसदी कारगर तो हैं ही साथ ही इनका कोई भी साइड इफेक्ट भी नहीं होता है। आज हम जानेंगे एक बेहद कॉमन और बेरहम बीमारी कमर दर्द के बारे में।
कमर दर्द से बचने के उपाय :-
- अजवाइन को तवे के ऊपर थोड़ी धीमी आंच पर सेंक लें तथा ठंडा होने पर धीरे-धीरे चबाते हुए निगल जाएं। लगातार 7 दिनों तक यह प्रयोग किया जाए तो आठवे दिन से कमर दर्द में 100 फीसदी लाभ होता है।
- जहाँ दर्द होता हो वहाँ 5 मिनट तक गरम सेंक, और दो मिनट ठंडा सेंक देने से तत्काल लाभ पहुंचता है।
- सुबह सूर्योदय के समय 2-3 मील लंबी सैर पर जाने वालों को कमर दर्द की शिकायत कभी नहीं होगी।
गुर्दे का दर्द
तुलसी के पत्ते (छाया में सुखाई हुई) --- 20 ग्राम
अजवायन अजमोद (साफ की हुई) ---- 20 ग्राम
सेंधा नमक --- 10 ग्राम
तीनों को पीस कर चूर्ण बना कर रख लें। जरुरत होने पर चूर्ण 2-2 ग्राम की मात्रा में गुनगुने पानी से सुबह शाम लें। एक ही मात्रा लेने से गुर्दे के दर्द में राहत मिल जाएगी ।
विशेष :- नज़ला सर्दी, जुकाम, खांसी, पेट-दर्द, अफारा, बदहजमी, अपच, खट्टे डकार, कब्ज, उल्टियों के लिए भी उल्टी रामबाण हैं।
खांसी
अदरक का सूखा हुआ रूप सौंठ होता है। इस सौंठ को पीस कर पानी में खूब देर तक उबालें। जब एक चौथाई रह जाए तो इसका सेवन गुनगुना होने पर दिन में तीन बार करें। तुरंत फायदा होगा।
काली मिर्च, हरड़े का चूर्ण, अडूसा तथा पिप्पली का काढ़ा बना कर दिन में दो बार लेने से खांसी दूर होती है।
हींग,काली मिर्च और नागरमोथा को पीसकर गुड़ के साथ मिलाकर गोलियाँ बना लें। प्रतिदिन भोजन के बाद दो गोलियों का सेवन करें। खांसी दूर होगी। कफ खुलेगा।
पानी में नमक, हल्दी, लौंग और तुलसी पत्ते उबालें। इस पानी को छानकर रात को सोते समय गुनगुना पिएं। सुबह खांसी में असर दिखाई देगा। नियमित सेवन से 7 दिनों के अंदर खांसी का नामोनिशान नहीं रहेगा।
चश्मा छुड़ाए
यहां दिए जा रहे उपायों से आप आंखों की सुरक्षा कुछ हद तक कर सकते हैं। निरंतर निम्नलिखित उपाय करें तो हो सकता है आपका चश्मा छूट जाए। यह सब नियम पालन पर निर्भर है।
- आधा चम्मच मख्खन (अमूल मख्खन ले सकते हैं), आधा चम्मच पिसी मिश्री और थोड़ी सी पिसी कालीमिर्च, स्वाद के अनुसार मात्र में लेकर तीनों को मिला लें और चाट लें। इसके बाद कच्चे (पानी वाले सफेद) नारियल के 2-3 टुकड़े खूब अच्छी तरह चबाकर खा लें। अब थोड़ी सी सौंफ (मोटी या बारीक वाली) मुंह में डाल लें। इसे आधा घंटे तक मुंह में रखकर चबाते, चूसते रहें, इसके बाद निगल जाएँ।
- प्रतिदिन भोजन के साथ 50 से 100 ग्राम मात्रा में पत्तागोभी के पत्ते बारीक कतर कर, इन पर पिसा हुआ सेंधा नमक और काली मिर्च बुरकर, खूब चबा-चबाकर खाएं।
- जब गाजर उपलब्ध हो तब प्रतिदिन 1-2 गाजर खूब चबा-चबाकर खाएं या इसका रस निकालकर भोजन के घंटेभर बाद पिएं।
- अपने आहार में पत्तागोभी, गाजर, आंवला, पके लाल टमाटर, हरा धनिया, सलाद, केला, संतरा, छुहारा, हरी शाक सब्जी, दूध, मख्खन, मलाई, पका आम आदि में से जिस-जिस का सेवन कर सकें तो प्रतिदिन उचित मात्रा में अवश्य सेवन करें।
तंबाकू की लत
तंबाकू खाने की आदत छुड़ाने में मनोवैज्ञानिक सलाह के अलावा निम्नलिखित घरेलू नुस्खे भी अपनाए जा सकते हैं ।
- बारीक सौंफ के साथ मिश्री के दाने मिलाकर धीरे-धीरे चूसें, नरम हो जाने पर चबाकर खा जाएं।
- अजवाइन साफ कर नींबू के रस व काले नमक में दो दिन तक भींगने दें। इसे छांव में सुखाकर रख लें। इसे मुंह में रखकर चूसते रहें।
- छोटी हरड़ को नींबू के रस व सेंधा नमक (पहाड़ी नमक) के घोल में दो दिन तक फूलने दें। इसे निकाल कर छांव में सुखाकर शीशी में भर लें और इसे चूसते रहें। नरम हो जाने पर चबाकर खा लें।
- तंबाकू सूंघने की आदत छोड़ने के लिए गर्मी के मौसम में केवड़ा, गुलाब, खस आदि के इत्र का फोहा कान में लगाएं।
- सर्दी के मौसम में तंबाकू खाने की इच्छा होने पर हिना की खुशबू का फोहा सूंघें।
- खाने की आदत को धीरे-धीरे छोड़ें। एकदम बंद न करें, क्योंकि रक्त में निकोटिन के स्तर को क्रमशः ही कम किया जाना चाहिए।
दर्द से राहत दिलाने वाला तेल
सामग्री :-
50 ग्राम सरसों का तेल
50 ग्राम सफेद तिल का तेल
15 लौंग
1 टुकडा दालचीनी
2 टेबल स्पून अजवायन
1 टेबल स्पून मेथी दाना
15 लहसुन की कली बारिक कटी हुई
1 छोटा टुकडा अदरक पिसा हुआ
1 टी स्पून हल्दी
2 बडे पीस कपूर
1 टेबल स्पून एलोवेरा जैल
विधि :- कढाई मे दोनो तेल डाल कर तेज गैस पर गर्म करो फिर गैस को धीमी करके हल्दी और कपूर को छोड कर सारी चीजो को डाल दो, जब तक सारी चीजे जल न जाए और उन का सत तेल मे ना आ जाऐ, करीब 20-25 मिनट लगेंगे इन्हें जलने मे, जब ये भून जाएगें तब तेल का रंग गहरा हो जाएगा। फिर गैस बंद कर दे और उसमे हल्दी, कपूर मिला दे। जब तक कपूर घुल ना जाए तब तक तेल को ठंडा होने दे फिर तेल को छान कर एक शीशी मे भर कर रखो , कैसा भी बुरा दर्द हो इससे मालिश से गायब हो जाएगा ।
कृप्या कोई भी पेन किलर ना खाऐ तबियत खराब हो जाएगी चिकन गुनिया, गठिया बाय, जॉइंट्स पैन मे ये तेल बहुत असरदार है बनाकर मालिश करके देखे जिन्हे तकलीफ हो ।
चिकनगुनिया मे पैरो मे और जोइंट पेन ज्यादा होता है यह तेल 100% फायदेमंद है लगाते ही आराम आना शुरू हो जाएगा पहले दिन से दिन मे 3 बार मालिश करें ।
पेचिश नई या पुरानी
स्वच्छ सौंफ 300 ग्राम और मिश्री 300 ग्राम लें। सौंफ के दो बराबर हिस्से कर लें। एक हिस्सा तवे पर भून लें। भुनी हुई और बची हुई सौंफ लेकर बारीक पीस लें और उतनी ही मिश्री (पिसी हुई) मिला लें। इस चूर्ण को छः ग्राम (दो चम्मच) की मात्रा से दिन में चार बार खायें। ऊपर से दो घूँट पानी पी सकते हैं। आंवयुक्त पेचिश - नयी या पुरानी (मरोड़ देकर थोडा-थोडा मल तथा आंव आना) के लिए रामबाण है। सौंफ खाने से बस्ती-शूल या पीड़ा सहित आंव आना मिटता है।
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दही, भात, मिश्री के साथ खाने से आंव-मरोड़ी के दस्तों में आराम आता है। या मैथी (शुष्क दाना) का साग बनाकर रोजाना खावें अथवा मैथी दाना का चूर्ण तीन ग्राम दही में मिलाकर सेवन करें। आंव की बिमारी में लाभ के अतिरिक्त इससे पेशाब का अधिक आना भी बन्द होता है। प्रतिदिन मैथी का साग खाने से आंव की बिमारी अच्छी होती है। और पेशाब का अधिक आना बन्द होता है।
पेट में गैस
आज छोटी उम्र से ही व्यक्ति कई बीमारियों से ग्रस्त है। जैसे कब्ज़, गैस, कमर दर्द, त्वचा के रोग, रक्त चाप, दांत संबंधी रोग। ये कुछ एसी बीमारियां हैं जिनसे दुनिया का लगभग हर दूसरा व्यक्ति हैरान-परेशान है। जिसे पेट की कोई भी समस्या न हो ऐसा व्यक्ति तो दिन के उजाले में भी ढूढना मुश्किल जान पड़ता है।
गैस की समस्या से निजात पाने के लिए काली मिर्च और नमक को पीस कर पानी के साथ लेने से लाभ होता है ।
मट्ठा, हींग, सोंठ, गुड आदि पाचन में बेहद सहायक चीजों का सेवन करने से यह बीमारी जड़ से चली जाती है ।
एक गिलास गुनगुने पानी में आधा नीबू, थोड़ा सा काला नमक, सिका हुआ जीरा और थोडी सी हींग मिलाकर लेने से गैस की तकलीफ में तत्काल राहत मिलती है।
बहरापन
एक चुटकी असली हींग, स्त्री के दूध में घिस कर, कान में डालने से बहरापन दूर होता है।
आक के पीले पत्ते, जिनमें छेद न हो, आग पर गरम कर के, उन्हें मसल कर रस निकालें और इस रस को कान में दो - दो बूंद डालने से बहरेपन और कर्णस्राव में भी आराम मिलता है।
मूली का रस, शहद, सरसों का तेल, बराबर मात्रा में मिला कर, दो-तीन बूंद कान में सुबह-शाम डालने से बहरेपन में आराम आता है
कर्णपीड़ा के उपाय :
तुलसी के पत्तों का रस गुनगुना कर दो-दो बूंद प्रातः सायं डालने से कान के दर्द में राहत मिलती है और बहरापन भी ठीक होता है । अदरक के रस में नमक एवं शहद मिला कर, गुनगुना कर, कानों में डालने से कान के दर्द में आराम आता है । प्याज का गुनगुना रस कान में डालने से कान के दर्द में आराम मिलता है। इससे बहरेपन एवं कर्णस्राव में भी लाभ होता है ।
कर्णस्राव ( कान बहने ) के उपाय :
कान को साफ कर दो-दो बूंद स्पिरिट तीन चार दिन कान में डालने से कान का बहना ठीक होता है।
सरसों का तेल एवं रतनजोत 10 : 1 अनुपात में मिला कर पका कर कान में डालने से कर्णस्राव में आराम होता है। यह कान के दर्द एवं बहरेपन में भी लाभकारी है ।
स्त्री के दूध में रसौत एवं शहद मिला कर कान में डालने से कर्णस्राव स्थाई रूप से रुक जाता है ।
दो - दो बूंद चूने के पानी को कान में डालने से बच्चों के कर्णस्राव में आराम मिलता है ।
बालतोड़ और पीलिया
बालतोड़ होना एक आम बात है, कुछ लोगों को किसी भी कारण शरीर से कोई बाल किसी कारण टूट जाए तो वहां एक बड़ा फो़ड़ा जैसा हो जाता है। इस फोड़े में पीप या पस बन जाता है। डॉक्टर के पास जाने पर वह एक चीरा लगाता है, तब यह ठीक होने लगता है। यह जब तक ठीक नहीं होता, जबर्दस्त तरीके से दुःखता है, व्यक्ति बेचैन रहता है।
इसका घरेलू इलाज इस प्रकार है- एक चम्मच मैदा व पाव चम्मच सुहागा डालकर जरा सा घी डालें और इसे आग पर पकाकर हलवे जैसा गाढ़ा बना लें। इसे पुल्टिस की तरह बालतोड़ पर रखकर सोते समय पट्टी बांध कर सो जाएं। दो-तीन बार ऐसा करने पर बालतोड़ ठीक हो जाएगा। पीलिया : घर में जमाया हुआ दही 250 ग्राम और फुलाई हुई फिटकरी 10 ग्राम, दोनों को मिलाकर एक बार सुबह और एक बार शाम को खाएं। अन्न न लें, सिर्फ दही और छाछ का सेवन करें और सात दिन तक बिस्तर पर आराम करें। पीलिया में यह नुस्खा बहुत ही कारगर सिद्ध हुआ है।
मिर्गी
- तिलों के साथ लहसन खिलाएं। इससे वात का मिरगी रोग धीरे-धीरे जाता रहता है।
- दूध के साथ शतावरी खाने से साधारण पित्त का मिरगी रोग दूर होता है।
- शहद में ब्राह्मी का रस मिला कर लेने से कफ का मिरगी रोग ठीक हो जाता है।
- राई और सरसों को गो मूत्र में पीस कर शरीर पर लेप करें। इससे हर प्रकार की मिरगी में लाभ मिलता है।
- मीठे अनार के रस में मिस्री मिला कर पिलाने से बेहोशी दूर होती है।
- नींबू के साथ हींग चूसने से मिरगी का दौरा नहीं पड़ता।
- अकरवारा को सिरके मे मिला कर शहद के साथ प्रतिदिन प्रातः काल चाटने से मिरगी दूर होती है।
- लहसुन की कलियों को दूध में उबाल कर पीने से पुरानी मिरगी भी दूर हो जाती है।
- लहसुन कूट कर सुंघाने से मिरगी के दौरे की बेहोशी दूर होती है।
- वच को बारीक पीस कर ब्राह्मी अथवा शंखाहुली के रस, या पुराने गुड़ के साथ लें, तो मिरगी रोग में आराम मिलता है।
- पीपल, चित्रक, पीपरामूल, त्रिफला, चव्य, सौंठ वायविडंग, सेंधा नमक, अजवायन, धनिया, सफेद जीरा, सभी को बराबर मात्रा में पीस कर चूर्ण बना लें और सुबह-शाम पानी के साथ लेने से मिरगी रोग में लाभ होता है।
सावधानियां
मिरगी के रोगी को प्रायः सभी प्रकार के नशों को त्याग देना चाहिए। उसे चाय-काफी, उत्तेजक द्रव्य, मांसाहारी भोजन से बिलकुल दूर रहना चाहिए और सोने से दो घंटे पूर्व भोजन कर लेना चाहिए। विवाहित स्त्री-पुरुषों को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और अविवाहित स्त्री-पुरुष कृत्रिम मैथुन से बचें। उन्हें रोग पैदा करने वाले सभी मूल कारणों से बचना चाहिए, जैसे कब्ज, थकान, तनाव और मनोविकार।
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